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Showing posts from June, 2020

मोहब्बत या बेवकूफीयत, क्या परोसा जा रहा है आपको?

नोटिस:- कमजोर दिल तथा आजकल की सच्ची मोहब्बत करने वाले लोग भी इसको पढ़ सकते हैं । बशर्ते आप ने अपने शोना, बाबू ,बेबी और कुचु-पुचु से कभी-कभी शब्दों की कड़वाहट झेली हो । आमतौर पर नोटिस नीचे दिया जाता है, पर मैंने आप लोगों की सच्ची मोहब्बत और मेरे पाठकों के सलामती को देखते हुए नोटिस ऊपर ही लगा दिया है । मोहब्बत के मारे लोगों के प्रति मेरी गहरी संवेदना और उनके साथ तो समुद्र की गहराई से भी ज्यादा गहरी सहानुभूति जिनको सच्ची मोहब्बत और प्यार के नाम पर बाबू-शोना वाला प्यार परोसा जा रहा है, डिट्टो हर हफ्ते सैट मैक्स पर आने वाले सूर्यवंशम के केशर वाली खीर की तरह, जिन्हें मालूम तो है कि इस खीर में जहर है, फिर भी जबरदस्ती उसे खाने का प्रयास कर रहें हैं और ये सोच रहें हैं कि हम तो जिंदा बच जाएंगे । और इन सबसे ज्यादा गहरी सहानुभूति उनके साथ जिन्हें अपने प्यार के दुःखद अंत में जबरदस्त डायलॉग जैसे- "कुछ तो मजबूरी रही होगी उनकी भी वरना यूँ चाहकर, बेवफ़ा कोई नहीं होता ।" का सहारा लेना पड़ता है । देखो जी मैं आपको भलीभाँति अवगत करा दूँ की मैं न तो किसी चैनल और न ही किसी फिल्म को प्रमोट कर रहा हूं

करके नामर्दों सा काम वो,आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...

आपने मेरी "मैं ब्रम्हनाद ॐ हूँ" कविता को बहुत प्यार दिया, उसके लिए आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ । आज मैं अपनी माता श्रीमती यामिनी साहू के जन्मदिवस के मौके पर यह कविता आप सभी के समक्ष ला रहा हूँ । यह कविता थोड़ी लंबी ज़रूर है, पर अगर आप इसे पढ़ना शुरू करेंगे तो यह आपको अंत तक बहुत ही रोचक लगेगी, अंत में ही इसका परिपूर्ण रूप आपको देखने को मिलेगा । इस कविता में मैंने सामाजिक मुद्दे"पुरूष प्रधान सामाज" को जो सच में समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, के बारे बताया है और समाज में इन कुरीतियों और घटनाओं को दूर करने के लिए अपने शब्दों  में जो भी बन पड़ा वह लिखा है । कहीं कुछ त्रुटि हो या किसी बात से आपके भावनाओं को क्षति पहुंची हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ🙏 "सुन लो आज योद्धा कुछ कहने चला है, मर्दानगी की अटूट मानसिकता से पृथक, वो अपनी अविरल धारा में बहने चला है, सुन लो आज योद्घा कुछ कहने चला है... चढ़ाकर बलि वो मर्द कन्या भ्रूण की, सुना है, नवरात्रि में कन्या भोज रखने चला है, खिलाकर दो चार पूड़ियाँ और हलवे, देखो वो गंगा

"मैं ब्रह्मनाद ॐ हूँ"

ॐ जो एक शब्दब्रह्म के रूप में जाना जाता है, यह हिन्दू धर्म का एक बहुत ही पवित्र शब्द है, जो अपने में पूरी सृष्टि को समाये हुए है । इस शब्द की उत्पत्ति राजा भरत ने सूर्यवंशियों और चन्द्रवंशियों के एकता हेतु की थी । यह तीन रंगों में रंगी हुई है, इसके ऊपरी हिस्सा सफेद रंगों में है, जो चन्द्रवंशियों के बारे में बताता है, इसके नीचे का हिस्सा लाल रंग का है, जो सुर्यवंश को इंगित करता है । और यह दोनों हिस्से जहाँ आकर मिलते हैं, वह नारंगी रंग में रंगा होता है, जो एक समान मार्ग पर चलने को दर्शाता है । और इस ऊ के ऊपर जो चाँद(दूज का चाँद) और इस चंद्रमा के ठीक ऊपर ही बिंदु स्थित है वह सूर्य है जो उस समय के चन्द्रवंशियों और सूर्यवंशियों के तात्कालिक प्रतीक के रूप में स्थापित थे । इस पवित्र शब्द के गुणगाण के लिए मैंने भी कुछ पंक्ति अपनी कविता के रूप में पिरोया है,उसका मजा लीजिए व अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें तथा इसे और भी सनातन धर्मों के जनों तक शेयर करके पहुंचाए । तेरी धरा, जिसमें समाये, हाँ मैं वही व्योम हूँ, सचराचर सृष्टि में व्याप्त, मैं ब्रह्मनाद ॐ हूँ, हूँ मैं हर कोने में, फिर क्यूँ ह