करके नामर्दों सा काम वो,आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...

आपने मेरी "मैं ब्रम्हनाद ॐ हूँ" कविता को बहुत प्यार दिया, उसके लिए आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ ।

आज मैं अपनी माता श्रीमती यामिनी साहू के जन्मदिवस के मौके पर यह कविता आप सभी के समक्ष ला रहा हूँ ।
यह कविता थोड़ी लंबी ज़रूर है, पर अगर आप इसे पढ़ना शुरू करेंगे तो यह आपको अंत तक बहुत ही रोचक लगेगी, अंत में ही इसका परिपूर्ण रूप आपको देखने को मिलेगा ।

इस कविता में मैंने सामाजिक मुद्दे"पुरूष प्रधान सामाज" को जो सच में समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, के बारे बताया है और समाज में इन कुरीतियों और घटनाओं को दूर करने के लिए अपने शब्दों  में जो भी बन पड़ा वह लिखा है ।
कहीं कुछ त्रुटि हो या किसी बात से आपके भावनाओं को क्षति पहुंची हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ🙏


"सुन लो आज योद्धा कुछ कहने चला है,
मर्दानगी की अटूट मानसिकता से पृथक,
वो अपनी अविरल धारा में बहने चला है,
सुन लो आज योद्घा कुछ कहने चला है...


चढ़ाकर बलि वो मर्द कन्या भ्रूण की,
सुना है, नवरात्रि में कन्या भोज रखने चला है,
खिलाकर दो चार पूड़ियाँ और हलवे,
देखो वो गंगा में अपना पाप धोने निकला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...


ताड़ता रहा सरे राह रात-दिन वो उसे,
इश्क़ का इजहार करने, आज वो निकल पड़ा है,
तबतक तो सबकुछ ठीक था,
पर जब उसने इज़हार किया,
खौल गया खून उस मर्द का,
जब उस लड़की ने इनकार किया,

बस फिर क्या था,
आज वो उस मासूम को,
अपनी हवस में रौंदने चला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...

अरे योद्धा!
उसके मर्दानगी की, और मैं क्या मिशाल दूँ,
होकर मर्द मैं खुद, क्या मर्द को ही सवाल दूँ,
पर देखो वो मर्दानगी के नाम पर,
गली-गली माँ-बहन की कहने चला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...


औरतों के तन से परे,देखता नहीं वो कभी,
पर नारी सशक्तिकरण की डींगे हैं हाँकता बड़ी-बड़ी,

नारी खड़े हो तुम अपने पैर,तो यह मर्दों को खल रहा है,
लांघ गये तुम चार दीवार,अस्तित्व को वो अपने डर रहा है,

बाँधकर तुम्हारे पैरों में बेड़ियाँ,
वो तुमसे आगे बढ़ने चला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...


दहेज के तराज़ू में तौलकर तुमको दिया हिस्सा परिवार में,
उपभोग की वस्तु समझ ले आया तुम्हें वो बाज़ार से,
बना के पत्नी के तन को बिस्तर,
देखो आज वो उसमें रहने चला है,

करके नामर्दों सा काम वो,
आज खुद को मर्द कहने चला है...


बेटी की सिसकियां, कभी उसने न सुनी,
खुद का खोया अधिकार पाने,वो बेटी समाज से है लड़ रही,
बेटी को बताकर पराया धन,
वो उसे शादी के बाज़ार में बेचने निकला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...


अपने ही बेटे की ख़ातिर,
उस माँ ने था,ख़ुद को आग में तपाया,
माँ की मेहनत के बूते ही,
उस बेटे ने अपना मुकाम था पाया,
पच्चीस बरस की नौकरी में फिर भी,
वो एक चिंदी भी न माँ को दे पाया,

पर विडंबना देखो,
आज वो अपनी माँ को कफ़न ओढ़ाने चला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहलाने चला है...


घर की इज्ज़त आबरू उसको प्यारी,
इसलिए माँ,बहन,पत्नी,बेटी बंद है चार दीवारी,
घूम-घूमकर हर गली और मोहल्ले,
ख़ुद बन बैठा है वह बलात्कारी,
देखो आज वो सभ्य-संस्कृति का,
वाहक बनने चला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...


औरत हो औरत के जैसे रहो,
है वो हरदम बोल रहा,
पर मर्दानगी की तराज़ू में,
वह खुद को कभी न तौल रहा,
मर्द बन मर्द के ताने झोंक,
वो बेटी में भी बेटा ढूँढने चला है,
करके नामर्दों सा काम वो,
आज ख़ुद को मर्द कहने चला है...

आप अपने मूल्यवान सुझाव जरूर कमेंट करके बतायें🙏
धन्यवाद😊

~kishan M.Sahu
Instagram:- @kalam_yoddha & @babbar_kishu7

Comments

  1. Excelente bro..
    🤘👌👌👌👍

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  2. Great yr..... ab jaruri h ek mard ko kisi dusre mard k upr sawal uthane ka.. awesome bro... continue it

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    1. Sawaal toh sabhi varg se hai...abhi sab ek ek karke katghare me khade honge bhai🙏✌️

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    2. Dhanywad dhadhwal ji aapka😊🙏

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  3. Head's of to u Mr. Sahu ji....excellent Isse behtar bday gift ek bete ki taraf se maa K liye ho hi nhi sakta.... Keep it up

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    1. धन्यवाद आपका महोदया🙏😊

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