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Showing posts from July, 2020

बेरोजगारी

बेरोजगारी के विषय पर इस कविता को लिखने के लिए जो मुझे प्रेरणा मिली है, वो इंदौर के एक बहुत प्रसिद्ध कवि श्री एकाग्र शर्मा जी से मिली है । मैंने उनकी कोरोना महामारी पर लिखी कविता को सुनकर यह प्रेरणा पायी और हमारे छत्तीसगढ़ में वर्तमान स्थिति को देखकर भी इस विषय पर लिखना जरूरी था ।  क्योंकि हाल ही में जो कुछ घटनाएं यहाँ घटित हुयी है, वह सच में हृदयविदारक है । और इस ज्वलंत मुद्दे को नकारना मेरे लिए बहुत कठिन था, अतः मेरे तरफ से जो बन पड़ा, वह मैंने अपने कविता के शब्दों के रूप में ढाला है । आशा है कि यह कविता आपको पसंद आएगी । कृपया अंत तक पढ़े, अंत में आपकी आनंद दोगुनी हो जाएगी । ●हाय, हाय ये बेरोजगारी रे, क्या-क्या दिन दिखलाये, अब ये दर्द सहा न जाये रे, क्या-क्या दुःख बतलायें, बेरोजगारी भत्ते का करके वादा, नई सरकार है सत्ता में आयी, भत्ता-वत्ता तो न मिला हमको, उल्टा भर्ती पर ही रोक लगाई, अब कटऑफ भी बढ़ता जाए रे, क्या-क्या दुःख बतलायें, हाय, हाय ये बेरोजगारी रे, क्या-क्या दुःख बतलायें... ●बिन परीक्षा पास किये, डीसी बन गए आशीष भैया, पिताजी के नाम पर ही, पार हो गयी इनकी नैय्या, भर्ती भी निरस्त ह

अर्धनारीश्वर

"जिसने तुम्हारे तानों की घुट को हँसकर पिया है, वो आज भी तुमको हँसते-हँसते ही अपना दर्द बता रही..." किसी चीज के बारे में लिखने से पहले उसके बारे में जानना और उसकी समानुभूति करना बहुत जरूरी होता है...(अब सिर्फ सहानुभूति से काम न चलाओ,थोड़ा उससे आगे भी जाओ)... इसके लिए सबसे पहले लोगों को सुनना जरूरी है, तो कृपया सुनें । इस विषय पर बेहद ही उम्दा विचार व्यक्त करने वाले वीडियो का लिंक आपको नीचे मिल जाएगा ।  इस वीडियो की सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि यह विचार एक अर्धनारीश्वर "श्री गौरी सावंत जी" के द्वारा ही प्रकट किया गया है । जो एक सेक्स वर्कर के रूप में कार्यरत थी,उन्होंने अपनी जिंदगी के उस महत्वपूर्ण पड़ाव के बारे में बताया है जिसमें वह इस समाज को एक "आजी का घर" नामक उपहार दिया है और हम समाज वालों ने सिर्फ ताने । अब मैं अपनी बात पर आता हूँ । मुझे दो रात पहले नींद नहीं आ रही थी, लगभग रात के तीन बज रहे थे ।इतने में ही अचानक मुझे समाज के उपेक्षित तृतीय वर्ग जिसे हम "नपुंसक"कहते हैं के बारे में कुछ लिखने का विचार आया । पर उस वक्त जो 4 लाइन का विचार जो मेर

जईसे मिलगे सबला नवा घर

आपको कविता पढ़ने से पहले इस बात से अवगत कराना चाहूँगा, की मेरी लेखन शैली हिंदी भाषा में ही रही है और यह मेरी छत्तीसगढ़ी में पहली कविता है । हो सकता है मेरे छत्तीसगढ़ी लेखन में कहीं कुछ त्रुटि हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ।  यह कविता छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना पर आधारित है । जो पौराणिक इतिहास से आधुनिक इतिहास तक एक लंबी चरण प्रक्रिया के बाद 1 नवम्बर सन् 2000 को विश्व पटल पर अपने नक्शे को पूर्ण रूपेण प्राप्त करता है । और जिसे हम छत्तीसगढ़ महतारी के रूप में जानते हैं और इनका अभिनदंन करते हैं । तो आइए आप अपने छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास और इसके निर्माण में अभूतपूर्व सहयोग देने वाले हमारे पुरखों व नेताओं बारे में जानें । हमन हरन भइया ठेठ छत्तीसगढ़िया, मया पिरित के गोठ गोठियाथन बढ़िया, सुनलो हमर बखान छत्तीसगढ़ के, सोज्झे गोठियाबो, नो हन असोढ़ीया कभू जनम लिस इंहा माता कौशल्या, कभू पड़ीस मर्यादा पुरुषोत्तम के पांव, धन होगे छत्तीसगढ़ ह ममा बनके, अउ देखत भांचा म, रामलला के छाँव, कभू रिहिस ए धरती ह,कोशलराज के दक्षिण, जिंहा बसिस माता शबरी जइसे राम भक्तिन पाइस ख्याति, कलिंगकाल म हमर छत्तीसगढ़, के परदेस