अर्धनारीश्वर

"जिसने तुम्हारे तानों की घुट को हँसकर पिया है,
वो आज भी तुमको हँसते-हँसते ही अपना दर्द बता रही..."

किसी चीज के बारे में लिखने से पहले उसके बारे में जानना और उसकी समानुभूति करना बहुत जरूरी होता है...(अब सिर्फ सहानुभूति से काम न चलाओ,थोड़ा उससे आगे भी जाओ)...
इसके लिए सबसे पहले लोगों को सुनना जरूरी है, तो कृपया सुनें । इस विषय पर बेहद ही उम्दा विचार व्यक्त करने वाले वीडियो का लिंक आपको नीचे मिल जाएगा । 

इस वीडियो की सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि यह विचार एक अर्धनारीश्वर "श्री गौरी सावंत जी" के द्वारा ही प्रकट किया गया है । जो एक सेक्स वर्कर के रूप में कार्यरत थी,उन्होंने अपनी जिंदगी के उस महत्वपूर्ण पड़ाव के बारे में बताया है जिसमें वह इस समाज को एक "आजी का घर" नामक उपहार दिया है और हम समाज वालों ने सिर्फ ताने ।

अब मैं अपनी बात पर आता हूँ । मुझे दो रात पहले नींद नहीं आ रही थी, लगभग रात के तीन बज रहे थे ।इतने में ही अचानक मुझे समाज के उपेक्षित तृतीय वर्ग जिसे हम "नपुंसक"कहते हैं के बारे में कुछ लिखने का विचार आया । पर उस वक्त जो 4 लाइन का विचार जो मेरे मन में उभरा उसको मैंने अपने लिख दिया और इसके बारे में आगे और लिखने का सोचकर सो गया ।

बस इतना ही हुआ था कि सुबह जब मैं सोकर उठा और व्हाट्सएप के मैसेज चेक कर रहा था तभी एक ग्रुप में किसी महोदय ने समाज के इस उपेक्षित तृतीय वर्ग के बारे में "अर्धनारीश्वर" के नाम से एक अपनी कविता की वीडियो बना पोस्ट किया था जिसमें उन्होंने अत्यंत सुंदर लाइनें लिखी थी ।
पर मैं कल अपनी व्यस्तता के चलते अपनी अधूरी पंक्तियों को पूर्ण नहीं कर पाया और आज अचानक ही मुझे यह पोस्ट (जो लिंक के रूप में उपलब्ध है) को देखा ।

इसपर मुझे "ॐ शांति ॐ" फ़िल्म का एक डायलॉग याद आता है,
"किसी चीज को अगर दिल से चाहो,तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की साजिश में लग जाती है... "

सच में और यह हुआ भी है मेरे साथ...
इन तृतीय वर्ग, जिन्हें हम न जाने कितने ही नामों से हँसते-हँसते संबोधित करते हैं, के बारे में कुछ कविता लिखना शुरू किया है ।
फिलहाल तो यह अभी अपूर्ण है, पर जितनी मैं अभी तक लिख पाया हूँ, उसको पढ़कर आप मुझे जरूर बतायें की यह कैसी थी, इसमें और क्या सुधार किए जा सकते हैं, क्या नयापन डाला जा सकता है ।  आपके विचारों का स्वागत है |

1. "इंसान नहीं हूँ क्या?"

"माना मैं आधा नर और आधी नारी हूँ,
तो मेरे अंदर रहता कोई इंसान नहीं हूँ क्या?

जहाँ मुझमें अर्धनारीश्वर हैं बसते,
देवों का बनाया मैं वो मकान नहीं हूँ क्या?

चलो ताने सुनना मेरी आदत हो गयी है,
पर क्या प्यार की किसी की बोली सुनने,
लिये हुए मैं कोई अरमान नहीं हूँ क्या? "


2. "तुम कमा रहे हो खाने को,हम अपनी भूख मिटाने को"


"पटरी-पटरी भटक रहे हैं हम,
अपना अधिकार पाने को,

तुम कमा रहे हो खाने को,
हम अपनी भूख मिटाने को,

बजाते तो तालियां हमतुम दोनों हैं,
बस फर्क़ सिर्फ इतना है,

तुम दूसरों का जश्न मनाने को,
हम तुम्हें दुआ दे जाने को...


तुम्हारे तानों की हर घुट को,
हम चुपके-चुपके पीते हैं,

पर क्या सोचा है कभी तुमने(2)

तुम्हारे इस भेदभाव की दुनिया में,
हम कैसे हँसते-हँसते जीते हैं...

दर-दर दुआएं देकर भी सबको,
हम अंदर से अबतक न रीते हैं,

तुम तो बस एक लिंग में जिते हो,
हम दो-दो लिंगों को जिते हैं... (2)

पर देखो तुम लड़ रहे हो,
इस जग में अपना वर्चस्व जमाने को,

तुम कमा रहे हो खाने को,
हम अपनी भूख मिटाने को.."

~Kishan M.Sahu "कलमयोद्धा"

आपके विचारों की प्रतीक्षा में....

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